पघडी एवं साफा राजपूताना संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. भारतवर्ष के लगभग सभी राजा महाराजाओने पघडी और साफा के झरीए अपने राज्य को एक अलग पहचान देने का प्रयत्न किया था और आज भी हम उन पघडी एवं साफा के झरीये ही किसी स्थान विशेष को पहचान सकते है.

आज के इस समय मे लोग जब आधुनिकता को प्राधान्य देते है और इसी आधुनिकता की अंधी दौड के पीछे हमारी राजपूताना संस्कृति खत्म न हो जाये इसी विचार के चलते हमारा यह नम्र प्रयास है की हम पघडी और साफा की कला को जीवंत रखे और हमारी इस परंपरा को आज की इस नई पीढी को भी परिचित करवाये.