बाराड़ी पाघ
बाराड़ी पाघ बाराडी प्रदेश, जो की जामनगर, गुजरात में है, के लोग पहनते है. यह पाघ की विशेषता यह है की इसमे एक के उपर एक पट्टी बनाई जाती है जो की बनाने में बहूत ही मुश्कील काम है. इस पाघ को बांधने वाले बहूत कम लोग है.
बाराड़ी पाघ बाराडी प्रदेश, जो की जामनगर, गुजरात में है, के लोग पहनते है. यह पाघ की विशेषता यह है की इसमे एक के उपर एक पट्टी बनाई जाती है जो की बनाने में बहूत ही मुश्कील काम है. इस पाघ को बांधने वाले बहूत कम लोग है.
काठियावाड़ की आंटीयाळी पघडी जो की आगे से थोडी झुकी हुई होती है, पहनने वाले व्यक्ति को एक अनोखी पहचान देती है. यह पघडी काठियावाड़ के गांवो में पहनी जाती है.
राजस्थान में सभी लोग अलग अलग प्रसंगो में अलग अलग प्रकार के साफा बांधते है. अच्छे प्रसंंगो में रंगबिरंगी साफा बांधे जाते है. राजस्थान में आज भी बहूत से गांवो में लोग साफा बांधते है और राजपूताना संस्कृति को बनाये रखे है. पुरे भारतवर्ष में राजस्थान एकमात्र राज्य हैं जिसमे साफा बांधने की प्रथा अन्य…
राजस्थान मे राजपूताना संस्कृति को बहूत अच्छी तरह से पघडी के द्वारा संभाला गया है. राजस्थान में 14 कि.मी. के अंतर पर अलग अलग पघडी बांधी जाती है.
मोरबी और उनके भायात गांव जो पघडी पहनते थे उसे मोरबी की चक्री पघडी के नाम से पहचाना जाता है. जो की इंढोनी के आकार सी होती है.
गुजराती साफा कइ अलग अलग प्रकार के देखे गये है जिसमे सामान्य गुजराती, शादी का साफा, स्वामी नारायण का साफा और राजपूत साफा उल्लेखनीय है.
जोधपुरी साफा कला का एक अलग ही नमूना है जो की जोधपुर में पहना जाता है. इस साफे में सभी अलग अलग रंग दिखाई पडते है और एक अलग से ही निखार आता है.
साफा राजपूताना संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. पुराने जमाने में सभी लोग साफा पहनते थे लेकिन राजपूतो का साफा एक अलग ही पहचान थी जिसमे एक तरफ 9 आंटी लगाई जाती है और दूसरी तरफ की भौं (भृकुटी) तक लगाया जाता है जिससे एक अलग ही व्यक्तित्व दिखाई पडता है. आज के युग में…
झालावाडी पघडी अपने नाम से ही झाला राजपूतो की पहचान है. इस पघडी के दो प्रकार मखवान पघडी और झालावाडी पघडी है. झालावाडी पघडी एक तरफ झुकी हुई पहनी जाती है जबकी मखवान पघडी को बिचमे से पहना जाता है.
भरवाड और रबारी समाज के लोग भी पघडी पहेनती थे जिसमे भरतकाम किया हुआ एक लाल रंगका कपडा बिचमें रखा जाता है. खास करके पांच पंथक के रबारी लोग पघडी के एक तरफ भरतकाम किया हुआ एक पट्ट बिचमे रखके उसे अलग से दिखाते थे.